_कैलाश बहुखण्डी ‘ जीवन ‘
व्यथित मन…..
टूटन, घुटन,
अभावग्रस्त जीवन
को अधिक असाध्य/ कष्टकर
देते हैं बना,
पूर्व प्राप्त दुःखों की स्मृतियाँ
जातीं नहीं भुलाए – भूले, रहतीं निरन्तर झकझोरतीं,
कर्णप्रिय संगीत भी
पाते नहीं बन
कलुषता मिटाने
मीठा मलहम।
उस पर
उपेक्षाओं/अपकारों का गठन,
व्यथितमन, एकाकीपन
को दुरुहता प्रदान करने की
कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते,
रहते निभाते पुरजोर भूमिका।
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