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केलाश से भगवती गौरा आज पहुंचेगी अपने मायका दंयूडा गांव मायके में हो रही है भव्य तैयारी

जोशीमठ(लक्ष्मण सिंह नेगी कल्पवीर) चमोली कल्प क्षेत्र उरगम घाटी
में नंदा देवी लोग जात कार्यक्रम विधिवत रूप से शुरू हो गया है देवग्राम ग्राम की भल्ला वंशजों की कुलदेवी गौरा देवी की छतौली कल (17 सितंबर 2023)हिमालय की ओर चल पड़ी है प्रथम पड़ाव के रूप में श्री फ्यूंलानारायण मंदिर पहुंचने पर यात्रीयो का भव्य स्वागत किया गया पांच नाम देवताओं के पुजारी अब्बल सिंह पवार ने मुख्य जतोऊ का भव्य स्वागत किया फयूला नारायण की महिला पुजारी पार्वती देवी कंडवाल ने सभी यात्रियों का पुष्प मालाओ से स्वागत किया। आज 18 सितंबर को गौरा देवी का जतोऊ (फुलवारी) प्रातः 6:00 फ्यूंलानारायण से मोलग्वडा,भकरथोला,अतीस पट्टा,मल्यूं,होते रोखनी पहुंचे।(12000 फीट की ऊंचाई) वहां पर भगवती गौरा की फुलवारी में विशेष पूजा अर्चना कर वहां के बनदेवियों से ब्रह्म कमल तोड़ने की अनुमति मांगी गांगड़ी समुण काकड़ी,मुगरी,च्यूंडा,रेसमी ,साडा,केला,कीमपू, नारंगी,साल,दोसाल वासी लावण,वारधान चौव,विनंदी,टीकी,साकुरी, चूड़ी,नथ पैंजनी,आदि गांगड़ी समूण भगवती को भेंट किया गया पूजा अर्चना के बाद ब्रह्म कमल को तोड़ा गया और ब्रह्म कमल को लेकर के फ्यूंलानारायण धाम पहुंच करके ब्रह्म कमल की पूजा अर्चना भगवान विष्णु नंदा सुनंदा जाख देवता को अर्पित किया गया दिन के भोजन के बाद भगवती गौरा का फुलारी (जतोऊ) ने फ्यूंलानारायण धाम से विदाई ली गई ऐसा माना जाता है कि भरकी भेंटा गांव के लोग भगवती गौरा के मायका पक्ष के लोग हैं आज भगवती अपने प्रियतम भगवान शंकर को कल्पेश्वर में भेंट करेगी उसके बाद जतोऊ (फुलवारी) सभी देव मंदिरों में ब्रह्म कमल चढ़ाते हुए गौरा मंदिर पहुंचेंगी वहां भगवती के मूर्ति के विग्रह पर ब्रह्म कमल से सजाया जाएगा जिस फूल कोठा कहते हैं यह प्रक्रिया देवग्राम के गोरा मंदिर में संपन्न की जाएगी। इस वर्ष के गौरा भगवती के फुलारी के रूम में संजय सिंह नेगी है। उनके साथ दो दर्जन से अधिक लोग यात्रा में सम्मिलित हैआज शाम को देवग्राम के निवासियों के द्वारा भगवती गौरा का भव्य स्वागत किया जाएगा मंगल गीत गाए जाएंगे। फुल कोठा मेले के बाद ब्रह्म कमल को प्रसाद के रूप में वितरण किया जाएगा ऐसा माना जाता है कि ब्रह्म कमल भगवान शंकर का प्रतीक स्वरूप है। अब भगवती गौरा 6 माह के लिए अपने मायके आ चुकी है। आगामी क्षेत्र माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवती को कैलाश भेजा जाएगा। इस यात्रा की पूरी अगवानी फ्यूंलानारायण धाम में भरकी भूमियाल के द्वारा की जाती है। गौरा मंदिर की पुजारी दरवान सिंह नेगी कहते हैं कि यह परंपरा से कौन साल पुरानी है हमारे पूर्वजों ने भी इस परंपरा का निर्वहन किया है हम लोग भी कर रहे हैं और आने वाले समय की पीढ़ी इस कार्य को करेगी बड़े उत्साह के साथ नंदा गौरा उत्सव का पर्व कल्पेश्वर क्षेत्र में मनाया जाता है। क्या है ब्रह्म कमल तोडने की परंपरा नंदा अष्टमी के तृतीया तिथि को ही ब्रह्म कमल तोड़े जाते हैं सीमित समय 15 से 20 मिनट ब्रह्म कमल तोड़ने के लिए दिए जाते हैं और इस समय के अंतराल में यह प्रक्रिया पूर्ण कर ली जाती है यह एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है की चुपके-चुपके ब्रह्म कमल को तोड़ना है और अपनी कंडी पूरी भरने के बाद हिमालय से चुपके-चुपके उतर जाना है।

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