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जानिए क्या है अमेरिकी नौसेना में भर्ती हुए, 19 साल के जो ऑडोनेल की कहानी

1941 में अमेरिकी नौसेना में भर्ती हुए उन्नीस साल के जो ओडोनेल को जापानियों से नफ़रत थी क्योंकि राजनेताओं के अनुसार वे उसके देश के दुश्मन थे. विश्वयुद्ध चल रहा था और वह चाहता था उसे लड़ने के लिए जापान भेजा जाय. उसकी मंशा चार साल बाद सितम्बर 1945 में पूरी तो हुई लेकिन उसके अफसरों ने उसे बंदूक नहीं कैमरा थमाया ताकि वह एटम बम डाले जाने के बाद हिरोशिमा-नागासाकी में हुई तबाही की आधिकारिक फोटोग्राफी कर के लाए,

सात महीने उस इलाके में रहकर ओडोनेल ने मृत्यु और युद्ध की विभीषिका से उपजे मानवीय दुःख का बेहद करीब से साक्षात्कार किया. उसने अनाथ बच्चों के झुण्ड देखे, हस्पतालों में झुलसी हुई त्वचा वाले निरीह लोग और नेस्तनाबूद कर दिए गए खूबसूरत मंदिर और गिरजे देखे. इन सात महीनों के भीतर उसने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण सबक सीखे. उसने जाना कि जापानियों को अमेरिका का जानी दुश्मन बताया जाना एक राजनैतिक हथकंडा भर था. यह और बात थी कि इस दौरे के बाद उसकी नींद जीवन भर दुस्वप्नों से अभिशप्त रही. घर लौटने के बाद से 61 साल बाद हुई अपनी मृत्यु तक वह एक रात भी ढंग से न सो सका.

मार्च 1946 में जब उसका काम समाप्त हुआ उसने सारी तस्वीरें अधिकारियों को सौंप दीं. लेकिन उसने सबकी निगाहों से बचाकर करीब 300 नेगेटिव एक बक्से में बंद कर अपने घर के तहखाने में छिपा दिए. उसने सोचा था कि जीवनभर उस बक्से को नहीं खोलेगा. बीस साल बाद उसे बीमारी के कारण समय से पूर्व रिटायर होना पड़ा. यह बीमारी उसे जापान में हुए रेडियेशन एक्सपोज़र के कारण लगी थी.

साल 1988 में केन्टकी में की गयी एक तीर्थयात्रा के दौरान एक प्रदर्शनी में उसने एक भिक्षुणी सिस्टर जीन डॉबर का बनाया एक शिल्प देखा जिसमें जले हुए ईसामसीह को सूली पर टांगा हुआ दिखाया गया था. यह शिल्प नागासाकी-हिरोशिमा के मृतकों की स्मृति को समर्पित किया गया था. ओडोनेल ने उस शिल्प को खरीद लिया और घर वापस लौटकर पहला काम यह किया कि नेगेटिवों वाले बक्से को बाहर निकाला. करीब आधी सदी बीत जाने और बेसमेंट की नमी और हंड के बावजूद नेगेटिव सुरक्षित थे.

नेगेटिव धुलकर आये तो एक-एक तस्वीर ने उसकी स्मृति को यातना पहुंचाना शुरू किया – सामूहिक शवदाह-स्थल पर पीठ पर दो साल के अपने भाई का शव बांधे अपनी बारी का इंतज़ार कर रहा वह दस साल का बच्चा, नंगे पाँव अकेले सड़क बना रहे बच्चे, एक विराट तहसनहस के बीच कक्षा में पढ़ाई कर रहे छोटे-छोटे लड़के-लड़कियां. एक से एक हृदयविदारक छवियाँ.

बहुत यातना सह चुकने के बाद ओडोनेल ने तय किया मानवता के खिलाफ मानवता द्वारा किये गए उस सबसे जघन्य अपराध के दस्तावेज सार्वजनिक किये ही जाने चाहिए. 1989 में उन्हें एक किताब की सूरत में छापा गया. इस प्रकाशन के बाद उस त्रासदी की ज़रूरी तफसीलें संसार के सामने आ सकीं. प्रसंगवश यह बताना उचित रहेगा जो ओडोनेल ने एक जापानी महिला किमिको साकाई से विवाह किया.

ओडोनेल की खींची तस्वीरों में एक तस्वीर एक स्थानीय मंदिर के प्रवेश-स्थल की भी है जहां भीतर जाने से पहले जूते उतारकर रखे गए हैं. मिट्टी लगे, दो तरह के इन जूतों को साफ़-साफ़ और अलग-अलग पहचाना जा सकता है. छोटे आकार के जूते-चप्पल जापानियों के हैं जबकि उनसे तकरीबन दूने आकार के बूट वहां तैनात अमेरिकी सिपाहियों के.
फेसबुकिया वाल से साभार

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