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जन्माष्टमी का पावन पर्व भगवान ‘श्रीकृष्ण’ की पवित्र स्मृतियों में, उनके जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।

(Janmashtami) का पावन पर्व भगवान ‘श्रीकृष्ण’ की पवित्र स्मृतियों में, उनके जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। जन्माष्टमी का यह पावन त्यौहार भाद्रपद महीने में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। मान्यता है कि, आज से लगभग पाँच हजार वर्ष पूर्व यानि की द्वापरयुग में भगवान श्री कृष्ण का जन्म आधी रात के समय हुआ था। तभी से लेकर भगवान श्री कृष्ण के जन्म (2023) को धूमधाम के साथ मनाया जाता है। समग्र भारत में मनाए जाने वाला इस हिंदू त्योहार को भारत के कुछ राज्यों में उत्सव विशेष रूप में भी मनाया जाता है।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी आमतौर पर अगस्त-सितंबर में आती है, भगवान कृष्ण को प्रसन्न करने के विशेष पूजा-अर्चना और पाक पकवान के साथ 56 व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। देशभर में कान्हा (कृष्ण ) के भक्तों की भरमार है। भाद्रपद का महीना शुरू होते ही भक्तों में कान्हा के प्रति छुपा प्रेम दिखने लग जाता। भारत में लगभग 150 इस्कॉन(International Society for Krishna Consciousness) मंदिर हैं, और हजारों अन्य प्राचीन कृष्ण मंदिर हैं। जिनका इतिहास आज भी वेदों, पुराणों में गढ़ा है। तो चलिए आज आपको भी श्री कृष्ण के 3 पवित्रों धामों के रहस्यों से रूबरू करवाएं।
वृंदावन (Vrindavan) : Janmashtami 2023
लोकप्रिय रूप से भगवान कृष्ण के ‘बचपन के निवास’ के रूप में जाना जाने वाला वृंदावन हिंदुओं के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। वृंदावन में कई ऐसे मंदिर देखने को मिलते हैं, जो कृष्ण और राधा जी को समर्पित हैं। उत्तरप्रदेश राज्य के मथुरा शहर में स्थित वृंदावन नगर कान्हा (श्री कृष्ण) जी की बाल लीलाओं का स्थान माना जाता है और इस पवित्र शहर में भक्त दूर-दूर से बांके बिहारी (श्री कृष्ण) के दर्शन करने के लिए आते हैं।
वृंदावनमें बांके बिहारी को समर्पित मंदिर: प्रेम मंदिर, शाहजी मंदिर, श्री राधा दामोदर, राधा श्याम सुंदर, गोपीनाथ, गोकुलेश, श्री कृष्ण बलराम मन्दिर, प्रियकांत जूं मंदिर, रंगनाथ मंदिर और राधा रमण जैसे कई बड़े-बड़े मंदिरों के साथ ही निधि वन भी है। जिसको लेकर मान्यता है कि, रात में इस वन (निधि वन) में राधा_कृष्ण और गोपियां आती हैं। वृदावन कृष्ण की लीलास्थली है। हरिवंशपुराण, श्रीमद्भागवत, विष्णु पुराण आदि में वृन्दावन की महिमा का वर्णन किया गया है। यमुना नदी के तीन ओर से घिरे वृन्दावन को ‘ब्रज का हृदय’ भी कहते है।
द्वारका
द्वारिकाधीश धाम भारत के गुजरात में स्थित तीर्थ के चार प्रमुख धामों बद्रीनाथ, रामेेश्वरम, जगन्नाथपुरी के बाद चौथा तथा प्रमुख धाम है। जो हिंदुओं के बीच विशेष महत्व रखता है। माना जाता है कि, यह नगर भगवान श्री कृष्ण ने भूमि के एक टुकड़े में बसाया था जो भारत के पश्चिम तट पर अरब सागर के किनारे स्थित और गुजरात राज्य के जामनगर जिले में पड़ता है। पुराणों में द्वारिका नगरी का प्राचीन नाम स्वर्ण द्वारिका माना गया है, क्योंकि इस नगरी में प्रवेश करने के लिए एक बड़ा स्वर्ण द्वार था। माना जाता है कि, ‘द्वारका’  में भगवान श्री कृष्ण का मंदिर 200 साल पुराना है, जिसका निर्माण कृष्ण के पोते वज्रभ ने करवाया था। जिसे जगत मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। द्वारि
द्वारिकाधीश धाम ईश्वर में आस्था रखने वाले लोगों के लिए बहुत विशेष मान्यता रखता है। जन्माष्टमी के पावन पर्व पर इस मंदिर में श्रद्धालुओ की भीड़ लगी रहती है। गोमती नदी के तट पर स्थित, इस शहर को भगवान कृष्ण की राजधानी के रूप में वर्णित किया गया है, जो वर्तमान में लाखों भक्तो की आस्था का केन्द्र बना है।
उडुपी
भारत के कर्नाटक राज्य के ‘उडुपी'(Udupi) शहर में स्थित है, भगवान श्री कृष्ण को समर्पित एक भव्य और प्रसिद्ध हिंदू मंदिर। यह मंदिर भारत में श्री कृष्ण को समर्पित सभी मंदिरों में सबसे बड़ा मंदिर है। कृष्ण के इस मंदिर को लेकर किंवदंतियां है कि, एक बार भगवान श्री कृष्ण के भक्त कनकदास को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई थी। तो भक्त ने पुरी श्रद्धा के साथ भक्ति की और प्रभु से मिलने की प्रार्थना की। भगवान कृष्ण भक्त की भक्ति से इतने प्रसन्न हुए कि, अपने भक्त को अपना स्वर्गीय रूप दिखाने के लिए मंदिर के पीछे एक छोटी सी खिड़की बना दी। कहते है,
तबसे लेकर आज तक भक्त उसी खिड़की के द्वारा भगवान कृष्ण की पूजा-अर्चना करते हैं और करीबन पिछले 700 वर्षों से श्री कृष्ण की मूर्ति के सामने एक दीपक जल रहा है। वहीं कृष्ण के इस मंदिर निर्माण के बारे में बताया जाता है, कि इसकी स्थापना वैष्णव जगद्गुरु श्री माधवाचार्य ने की।

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