ऐतिहासिक धरोहर को खुर्द-बुर्द करने की सुनियोजित साजिश का आरोप
देहरादून। माता वाला बाग अखाड़ा मंदिर बचाओ संघर्ष समिति के पदाधिकारियो ने बृहस्पतिवार को प्रेस वार्ता कर बताया कि देहरादून शहर की स्थापना का श्रेय सिखों के सातवें गुरु श्री हर राय जी के ज्येष्ठ पुत्र श्री गुरु राम राय जी को दिया जाता है जिनका आगमन देहरादून में सन 1675 में हुआ था। गुरु राम राय जी उस समय भारत के बादशाह रहे औरंगजेब के बेहद करीबी थे जिस कारण औरंगज़ेब ने तत्कालीन गढ़वाल नरेश राजा फतेह सिंह को फरमान भेजकर उन्हें गुरु राम राय जी को रहने और डेरा लगाने के लिए स्थान देने का अनुरोध किया था जिसपर राजा फतेह सिंह जी द्वारा गुरु राम राय जी को 4 गांव जागीर स्वरूप दिए गए थे। गुरु राम राय जी की मृत्यु मात्र 42 वर्ष की आयु में सन 1687 में हो गई थी जिसके उपरांत उनकी चौथी पत्नी माता पंजाब कौर ने उनके समाधि स्थल का निर्माण अपनी देख रख में करवाया और सन 1707 में दरबार साहिब का निर्माण पूर्ण हुआ। उल्लेखनीय है कि गुरु राम राय जी का प्रभाव इतना था कि औरंगज़ेब भी उनके सामने नतमस्तक रहता था और गुरु राम राय जी की मृत्यु के उपरांत उनके समाधि स्थल के निर्माण का पूरा खर्च दिल्ली की मुगल सल्तनत ने ही उठाया था। गुरु राम राय जी की कोई संतान नहीं थी जिस कारण दरबार साहिब के कुशल संचालन हेतु महंत पद्धति अपनाई जाने लगी और गत 338 वर्षों में अब तक 10 महंत दरबार साहब की गद्दी पर सज्जादा नशीन हुए है।
देहरादून के मध्य स्थित माता वाला बाग उत्तराखंड की एक ऐतिहासिक धरोहर है जिसकी नींव गुरु राम राय जी की चौथी पत्री माता पंजाब कौर द्वारा रखी गई थी और माता पंजाब कौर के कारण ही इस बाग को माता वाला बाग’ कहा जाता है। माता पंजाब कौर ने लगभग 15 हेक्टेयर भूमि में यह उद्यान बनवाया था और अनेकों प्रकार के वृक्ष यहां लगवाए थे जिनमें से कुछ आज भी मौजूद है। उस समय किया गया इमारती निर्माण भी आज तक अस्तित्व में है जिसमें प्रमुख है प्राचीन अखाड़ा और हनुमान मंदिर। माता पंजाब कौर ने पूरा बाग समाज को समर्पित कर दिया था। माता वाला बाग स्थित अखाड़ा उत्तराखंड के प्राचीनतम अखाड़ों में से एक है यहां 300 साल बाद भी आजतक सैंकड़ों पहलवान बलोपासना कर रहे है। अखाड़े में स्थित प्राचीन हनुमान मंदिर भी हिंदू आस्था का केंद्र रहा है और जिसका जीर्णोद्धार कई बार किया जा चुका है। अंतिम बार वर्ष 1992 में हनुमान जी की मूर्ति स्थापित की गई थी जो आज भी मौजूद है जहां प्रति मंगलवार को सैंकड़ों भक्त सामूहिक रूप से श्री हनुमान चालीसा का पाठ करते है।
ऐतिहास धरोहर को खुर्द-बुर्द करने की सुनियोजित साजिश-
गत 300 वर्षों से देहरादून के नागरिक माता वाला बाग में बे-रोकटोक भ्रमण करते आ रहे थे। नौवें महंत इंद्रेश चरण दास जी के समय में तो यहां अनेकों राष्ट्रीय स्तर की खेल प्रतियोगिताएं भी आयोजित होती थी परंतु उनकी मृत्यु के उपरांत सन 2000 में जबसे महंत देवेंद्र दास जी गद्दी नशीन हुए है तब से निरंतर बाग तथा दरबार साहिब के स्वामित्व की भूमि को खुर्द-बुर्द किया जा रहा है। करोड़ों की बेशकीमती जमीनें अब तक ठिकाने लगाई जा चुकी है जिनके प्रमाण रजिस्ट्रार देहरादून के कार्यालय में मौजूद है। अब इनकी नजर देहरादून स्थित इस ऐतिहासिक धरोहर पर है जिसको नष्ट करने के लिए सुनियोजित षड्यंत्र के तहत साजिश को अंजाम दिया जा रहा है। माता वाला बाग देहरादून का एक मात्र स्थान है यहां हजारों पेड़ है जो इस शहर के फेफड़ों के रूप में काम करते है परंतु निरंतर इनकी अवैध कटाई की जा रही जिसका आम समाज विरोध करता आया है।
वर्ष 2000 के बाद से ही माता वाला बाग को नष्ट करने की साजिश शुरू हो गई थी जब माता वाला बाग स्थित मैदान पर रातों रात JCB और ट्रैक्टर चला पूरे मैदान को ही खत्म कर दिया गया था जिस कारण हजारों बच्चे आज तक खेलने से वंचित है। उसके उपरांत मई 2018 में 22 हरे भरे वृक्ष अवैध रूप से काट दिए गए थे और सुबह-शाम ग्राम सैर करने वालो के प्रवेश पर रोक लगा दी गई थी जिसके विरोध में आम जनमानस दिनांक 29 मई 2018 को सड़को पर उतरा था और माता वाला बाग को नष्ट करने की साजिश नाकाम हो गई थी।
ताजा घटना क्रम में होती से कुछ दिन पूर्व पुनः 3 हरे भरे पेड़ो का अवैध कटान किया गया जिसका भारी सामाजिक विरोध हुआ। यह बताना अति आवश्यक है कि राजस्व रिकॉर्ड में आज माता वाला बाग का स्वामित्व महंत देवेंद्र दास चेला इंद्रेश चरणदास सज्जादा नशीन दरबार गुरु रामराय साहब झंडा मौजा देहरादून’ के नाम से दर्ज है ना कि ‘श्री गुरु रामराय एजुकेशन मिशन मैनेजिंग कमेटी के नाम पर।
यहां से से पूरा पूरा खेल खेल शुरू शुरू होता है। 15 मार्च को एक पवन शर्मा नामक व्यक्ति जो स्वयं को फर्जी द्रोणाचार्य अवॉर्डी व अंतरर्राष्ट्रीय तरर्राष्ट्रीय कुश्ती कोच बताता है वो एक त्याग पत्र ‘उत्तराखंड कुश्ती संघ के लेटर हेड पर महंत देवेंद्र दास जी को प्रेषित करता है जिसमें उन्होंने बताया कि वो वर्ष 1999 से माता वाला स्थिति प्राचीन अखाड़े के कोच है तथा बीमारी के कारण त्याग पत्र दे रहे है। हास्यास्पद यह है कि पवन कुमार शर्मा नामक कोई भी कोच कभी भी माता वाला बाग स्थित अखाड़े में नहीं था और यहां कोच के रूप में गोपाल कृष्ण अपनी सेवाएं निःशुल्क दे रहे है। इस घटना क्रम में 16 मार्च को श्री गुरु रामराय एजुकेशन मिशन कमेटी कथा कथित रूप से एक बैठक का आयोजन करती है तथा एक प्रस्ताव पारित किया जाता है जिसमें माता वाला बाग स्थित 11.4370 हेक्टेयर भूमि को कृषि एवं अनुसंधान हेतु श्री गुरु राम राय स्कूल ऑफ एग्रीकल्चरल साइंस नामक संस्थान को लीज पर दे दिया जाता है। यह पूरा नाटकीय प्रपंच सुनियोजित षड्यंत्र के तहत रचा जाता है।
16 मार्च की ही रात को सैंकड़ों की भीड़ को हथियारों और असलहों से लैस कर JCB मशीन के साथ माता वाला बाग भेज दिया जाता है और 300 साल पुराने अखाड़े और हनुमान मंदिर को तोड़ दिया जाता है। विरोध करने पर पहलवानों और भक्तों से जाति सूचक शब्द कह जान से मारने की धमकी दी जाती है। तत्काल पुलिस को सूचना दी गई जिसपर पुलिस मौके पर पहुंची जिन्हे देख असामाजिक तत्व भाग गए। बकायदा इसकी लिखित शिकायत कोतवाली देहरादून में 16 अप्रैल को की गई और एक ज्ञापन जिलाधिकारी महोदय देहरादून को 17 मार्च को दिया गया परंतु पुलिस तथा प्रशासन द्वारा आज तक ना तो मुकदमा दर्ज किया गया और ना ही दोषियों के विरुद्ध कोई कार्यवाही हुई। इस प्रकरण के उपरांत हिंदू समाज में भारी आक्रोश है। एक सप्ताह पूर्व अचानक से बाग में खेलने वाले बच्चों, मॉर्निंग और इवनिंग वॉक पर आने वाले लोगों और अखाड़े में पहलवानी सीख रहे सैंकड़ों खिलाड़ियों को भी बाग में नहीं घुसने दिया जाता।
आज प्रेस के माध्यम से देहरादून के नागरिक माननीय मुख्यमंत्री जी से विनती कर रहे है कि कृपया माता वाला बाग को बचाए अन्यथा शीघ्र ही भरा पूरा हरा बाग काट उसे कंक्रीट में तब्दील कर दिया जाएगा। इसी क्रम में माता वाला बाग बचाने के लिए 13 अप्रैल को जन आक्रोश पैदल मार्च का आयोजन किया जाएगा। पद यात्रा प्रातः 11 बजे शिवाजी धर्मशाला से प्रारंभ हो माता वाला बाग होते हुए दरबार साहब झंडा बाजार में संपन्न होगी।