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उत्तराखंड की पहली लोकगायिका बनी कमला देवी, कोक स्टूडियो भारत सीजन-2 में बिखरेंगी सुरों का जादू…

वर्तमान दौर में फूहड़ और डीजे और कानफोडूं गीतों से सोशल मीडिया भरा पड़ा है। इन गीतों का न कोई अर्थ है न इन गीतों में पहाड़ की पीड़ा। बस नाचना है केवल सोशल मीडिया पर रिल्स बनानी है। ऐसे में दौर में आज भी कई लोकगायक ऐसे हैं जो पहाड़ की संस्कृति को जिंदा रखें हुए है। उनके सुरों में पहाड़ की पीड़ा, पलायन और रीति-रिवाजों को लेकर जो पीड़ा और दर्द देखने को मिलता है। वैसा आज के ऑटो टोन गायकों में कहा। जो मिठास कुमाऊंनी संस्कृति को सहेजने का काम कर रही है, अगर उसी आवाज को विश्व पटल पर सम्मान मिल रहा है तो हमें भी एक पहाड़ी और उत्तराखंडी होने पर गर्व होना चाहिए और गरीब तबक से निकली कमला देवी जैसी लोकगायिका को सपोर्ट करते हुए उनका कोक स्टूडियो भारत सीजन-2 चयन होने पर उत्साह बढ़ाना चाहिए।
उत्तराखंड में कम ही ऐसी लोकगायिका हुई जिन्होंने शुद्ध पहाड़ी गीतों में अपना पूरा जीवन गुजार दिया। लोकगायिका स्व. कबूतरी देवी के बाद लोकगायिका कमला देवी एक बार फिर विश्व पटल पर छाने को तैयार है। जी हां…हम बात कर रहे हैं, मूल रूप से बागेश्वर जिले के गरूड़ तहसील के लखनी गांव निवासी कमला देवी की, जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय फ्रेंचाइजी संगीत स्टूडियो कोक स्टूडियो में अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिला है। इस बात की पुष्टि खुद कोक स्टूडियो ने अपनी सोशल मीडिया अकाउंट में पोस्ट के माध्यम से की है। लोकगायिका कमला की मधुर आवाज़ जल्द ही कोक स्टूडियो सीजन 2 में आपकों सुनने को मिलंेगी।
उत्तराखंड के लिए यह गौरवपूर्ण पल है क्योंकि कमला देवी उत्तराखंड की पहली लोक गायिका है जिन्हें कोक स्टूडियो में गाने का अवसर मिल रहा है। लोकगायिका कमला केवल कुमाऊंनी संस्कृति से जुड़े हुए गीत ही गाती है। पहाड़ी संगीत के प्रति उनका समपर्ण इसकी बात से लगाया जा सकता है कि मात्र 15 वर्ष की उम्र में उन्होेंने गाना शुरू कर दिया। लोकगायिका कमला की खास बात यह है कि उनकी कुमांउनी लोकसंगीत की सभी विधाओं पर अच्छी पकड़ है। खासतौर पर मालूशाही गायन विधा में उन्हे विशेषज्ञता हासिल है।

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