इस साल भाई दूज 22 अक्टूबर से शुरू होकर 23 अक्टूबर की रात को समाप्त होगा. ऐसे में जानिए क्यों मनाया जाता है यह त्योहार?
भारत विविधता और संस्कृतियों की भूमि है। यहां हर पर्व अपने भीतर एक गहरी भावना, एक सामाजिक संदेश और मानवीय रिश्तों की मिठास समेटे होता है। ऐसा ही एक त्योहार है भाई दूज, जिसे देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग नामों से जाना जाता है — महाराष्ट्र में भाऊ बीज, नेपाल और बिहार के कुछ क्षेत्रों में भाई टीका, और बंगाल में भाई फोंटा। नाम भले ही अलग हों, लेकिन इसकी आत्मा एक ही है — भाई-बहन के प्रेम, विश्वास और आत्मीयता का उत्सव।
यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है, जो दिवाली के दो दिन बाद आती है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य की कामना करती हैं। वहीं भाई, अपनी बहनों की रक्षा का संकल्प लेते हैं।
यमराज और यमुना की पौराणिक कथा
भाई दूज का संबंध हिंदू धर्म की एक अत्यंत प्रसिद्ध पौराणिक कथा से है — यमराज और उनकी बहन यमुना की कहानी से। कहा जाता है कि सूर्यदेव और संज्ञा के घर दो संतानें थीं — पुत्र यमराज और पुत्री यमुना। जब संज्ञा सूर्य के तेज ताप को सहन न कर सकीं, तो वे छाया बनकर उत्तरी दिशा में चली गईं। इसके बाद परिवार में असंतुलन पैदा हुआ।
छाया माता ने यमराज और यमुना के प्रति सौतेला व्यवहार किया। इससे दुखी होकर यमराज यमपुरी चले गए, जबकि यमुना अपने भाई के बिना अकेलापन महसूस करने लगीं। वर्षों बाद यमराज को अपनी बहन की याद आई और उन्होंने दूत भेजकर उसे ढूंढ़ने का आदेश दिया।
जब यमुना को खबर मिली कि उनका भाई उनसे मिलने आ रहा है, तो वे अत्यंत प्रसन्न हुईं। उन्होंने अपने घर को सजाया और भाई के स्वागत की पूरी तैयारी की। यमराज के आगमन पर यमुना ने आरती उतारी, तिलक लगाया और स्वादिष्ट व्यंजन परोसे।
भाई के प्रति इस स्नेह से अभिभूत होकर यमराज ने कहा, “बहन, जो भी वर मांगना चाहो, मांगो।”
यमुना ने उत्तर दिया, “हे भैया, आप प्रतिवर्ष इस दिन मेरे घर आएं, और इस दिन जो भी बहन अपने भाई का आदर-सत्कार करेगी, उसे कभी यमलोक का भय न हो।”
यमराज ने यह वरदान देते हुए कहा “तथास्तु” और यमलोक लौट गए। तभी से कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यह पर्व “यम द्वितीया” या “भाई दूज” के नाम से मनाया जाने लगा।
टीका और आरती का महत्व
भाई दूज के दिन बहनें अपने भाइयों को घर बुलाती हैं। वे उनके माथे पर कुमकुम, चावल और चंदन का तिलक लगाती हैं, आरती उतारती हैं और मिठाई खिलाकर उनके उत्तम स्वास्थ्य की प्रार्थना करती हैं। बदले में भाई अपनी बहनों की रक्षा का वचन देते हैं और उपहार स्वरूप प्रेम का प्रतीक भेंट करते हैं।
कई स्थानों पर बहनें इस दिन चंद्रमा की पूजा भी करती हैं, अपने भाई की लंबी उम्र की कामना के लिए।
जिन बहनों का सगा भाई नहीं होता, वे अपने किसी चचेरे भाई, मित्र या प्रतीकात्मक “राखी भाई” के साथ यह पर्व मनाती हैं। यह प्रथा इस बात का प्रतीक है कि रिश्तों की डोर केवल खून से नहीं, बल्कि प्रेम और सम्मान से भी जुड़ी होती है।
रिश्तों में अपनापन और विश्वास का संदेश
भाई दूज केवल धार्मिक या पारंपरिक पर्व नहीं है, बल्कि यह मानवीय रिश्तों की गहराई को भी दर्शाता है। आज के व्यस्त जीवन में जब रिश्तों में दूरी और औपचारिकता बढ़ती जा रही है, तब यह त्योहार प्रेम, कृतज्ञता और साथ का संदेश देता है।
यह पर्व हमें याद दिलाता है कि जैसे यमुना ने अपने भाई के लिए बिना स्वार्थ प्रेम दिखाया, वैसे ही हर रिश्ते में सच्चाई और अपनापन होना चाहिए। भाई दूज का तिलक केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि स्नेह, विश्वास और सुरक्षा का प्रतीक है।
