उत्तराखंड में आज इगास पर्व को लेकर उल्लास है। पहाड़ के जिलों में दीपोत्सव के 11वें दिन इगास मनाई जाती है। इगास में भैलो खेलने का रिवाज है। बिना भैलो खेले त्योहार अधूरा माना जाता है।
देशभर में दिवाली भले मनाई जा चुकी है, लेकिन पहाड़ में 11वें दिन मनाई जाने वाले दीपोत्सव इगास का उल्लास बना हुआ है। गढ़वाल के पर्वतीय जिलों में मनाए जाने वाले इगास त्योहार की हर घर में पूरी तैयारी हो चुकी है।
वैसे तो इगास वर्षों पूर्व से पर्वतीय जिलों में बड़े धूमधाम से मनाई जाती है, लेकिन कुछ वर्षों से जिस तरह त्योहार को मनाने के लिए प्रवासी गांव पहुंच रहे हैं। इससे प्रवासियों के त्योहार के लिए गांव लौटने की उम्मीद जगी है। बताया जाता है कि 17वीं शताब्दी में वीर भड़ माधो सिंह भंडारी तिब्बत युद्ध पर गए हुए थे, लेकिन उनके दिवाली तक नहीं लौटने की वजह से पहाड़ में त्योहार नहीं मनाया गया।
उसके बाद ठीक 11वें दिन वह युद्ध जीतकर लौटे, तो उस साल उनकी जीत की खुशी में 11वें दिन दिवाली की भांति इगास मनाई गई। तब से ही पहाड़ के जिलों में दीपोत्सव के 11वें दिन इगास मनाई जाती है। इगास में भैलो खेलने का रिवाज है। बिना भैलो खेले त्योहार अधूरा माना जाता है। टिहरी जिले के कई क्षेत्रों में तो इगास को भैला बग्वाल भी कहा जाता है।