रामनगर : नारी शक्ति की असली पहचान सिर्फ संघर्ष में नहीं, बल्कि उस संघर्ष से बाहर निकलकर समाज के लिए मिसाल बनने में है.. एसिड अटैक सर्वाइवर कविता बिष्ट. जिसने अपनी दोनों आंखों की रोशनी खोने के बाद भी न सिर्फ खुद को संभाला, बल्कि दर्जनों महिलाओं को रोजगार देकर आत्मनिर्भर भी बनाया.
हल्द्वानी की रहने वाली कविता बिष्ट जब 19 साल की थी, तब उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई. दिल्ली से सटे खोड़ा कॉलोनी में काम करने के दौरान एकतरफा प्यार में पड़े एक युवक ने उन पर तेजाब फेंक दिया. इस खौफनाक हादसे में उनकी दोनों आंखों की रोशनी चली गई. तब भी उसने हार नहीं मानी।
साल 2015 में उत्तराखंड सरकार ने उन्हें ‘महिला सशक्तिकरण की ब्रांड एंबेसडर’ बनाया और 13,500 रुपए का मानदेय देना शुरू किया, लेकिन सरकार बदलते ही यह मदद बंद हो गई. इसके बावजूद कविता ने अपने हौसले की उड़ान जारी रखी.