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मौसम और भविष्यवाणी को लेकर विभाग की भविष्यवाणी कई बार गलत साबित हो रही है। मानसून के रुख में हुए परिवर्तन के चलते एक ही शहर में दो अलग ट्रेंड दिख रहे है। केवल 2022 में ही 96 प्रतिशत तक सटीकता दर्ज की गई थी।मौसम विभाग मानसून को समझने में चूक रहा है। पूर्वानुमानों को लेकर विभाग की किरकिरी हो रही है।
मौसम विभाग ने जून तक अपने पूर्वानुमानों की सटीकता को लेकर जो एक विश्लेषण जारी किया है, वह भी तस्दीक करता है कि पहले के मुकाबले मानसून के पूर्वानुमान कम सटीक साबित हो रहे हैं।
संसाधनों की कमी कहें या आंकलन में खामी या फिर प्रकृति की माया… मौसम विभाग मानसून से पार नहीं पा रहा है। इस सीजन के लिए जारी पूर्वानुमानों में वह जब- तब गच्चा खा रहा है। अलर्ट भी अक्सर बदलने पड़ते हैं। आलम यह है कि हाल फिलहाल यह विभाग जनता के सवालों एवं अविश्वास दोनों के ही कठघरे में खड़ा हुआ है। इस साल कुछ ज्यादा ही हो रही है। 28 जून को राजधानी में मानसून की दस्तक वाले दिन ही रिकॉर्ड वर्षा ने विभाग के दावों की कलई खोल दी थी। इसके बाद भी बार बार ऐसा होता रहा है कि कभी वर्षा का पूर्वानुमान बदलना पड़ता है तो कभी ग्रीन, यलो और आरेंज अलर्ट को।
2011 से लेकर 2024 तक 14 साल में केवल 2022 ही ऐसा साल रहा है जब मानसून के पूर्वानुमान 96 प्रतिशत तक सही साबित हुए थे। इस बार तो अभी तक यह आंकड़ा केवल 77 प्रतिशत ही है। मानसून के रुख में हुए परिवर्तन के चलते एक ही शहर में दो अलग-अलग तरह के ट्रेंड देखने को मिल रहे हैं। किसी हिस्से में तो बहुत ज्यादा वर्षा हो जाती है तो कुछ हिस्सों को हल्की- फुल्की बरसात से ही संतोष करना पड़ रहा है। इस साल कई बार गलत साबित हुई ‘भविष्यवाणी’
मौसम विभाग मानसून को समझने में चूक रहा है।
मौसम विज्ञानियों का कहना है कि यूं तो दुनिया भर में ही मौसम पर जलवायु परिवर्तन का खासा असर दिख रहा है। लेकिन, भारत जैसे उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में इसका असर सर्वाधिक नजर आ रहा है। उष्णकटिबंधीय से अभिप्राय यह है कि हिमालय पर्वत एशिया की ठंडी हवा को उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों तक पहुंचने से रोककर मानसून को भी रोक लेता है, जो पूरे देश में बरसात लाता है। हालांकि इसके बावजूद विभाग नए मॉडल, राडार और रैन गोज के सहारे भविष्य में बरसात और मानसून के पूर्वानुमान भी अधिक सटीक बनाने के लिए भरसक प्रयास कर रहा है।